♂️ आचार्य प्रशांत से मिलना चाहते हैं?<br />लाइव सत्रों का हिस्सा बनें: https://acharyaprashant.org/hi/enquir...<br /><br /> आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं?<br />फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?...<br /><br />➖➖➖➖➖➖<br /><br />वीडियो जानकारी: 10.08.24, प्रश्नोत्तरी सत्र , ग्रेटर नॉएडा <br /><br />प्रसंग: <br />~ क्या कोई भी चीज़ हमारी ज़िंदगी में अकेले आती है?<br />~ गीता किसके लिए है?<br />~ आज के युग में कृष्ण हमारे सामने कैसे आएंगे?<br />~ अध्यात्म आपको कौन से दृष्टि देता है?<br />~ शास्त्रों की ज़रूरत किसको नहीं है?<br /><br /><br />यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।<br />अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। <br /><br />~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 4, श्लोक 7<br /><br />जा मुझसे दूर जितना जाएगा<br />टकराएगा चिल्लाएगा गिर जाएगा<br />मत बचा मिटा दे प्यारे अंधेरे को<br />तू लाख बचा वो बच नहीं पाएगा<br /><br />~ आचार्य प्रशांत द्वारा सरल काव्यात्मक अर्थ <br /><br />अर्थ: <br />हे भारत! हे भरतवंशी, जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का अभ्युदय होता है, अधर्म सिर चढ़कर बोलता है तब-तब मैं उस धारा से अपने आप को प्रकट करता हूँ।<br /><br /><br /><br />परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।<br />धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।।४.८।। <br /><br />~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 4, श्लोक 8<br /><br />गिरना तेरा बहुत हुआ, <br />रुक जा अब रुक जा<br />कर झूठ पर वार प्रचंड, <br />सच समक्ष है झुक जा<br />तू तू नहीं तू मैं हो, <br />तो मेरी ताकत तेरी है<br />तू मैं मैं तू हूं तू दहाड़, <br />नहीं दूरी है नहीं देरी है<br /><br />~ आचार्य प्रशांत द्वारा सरल काव्यात्मक अर्थ <br /><br />अर्थ: <br />साधुजनों की रक्षा के लिए और जो दुष्कृत्य करते हैं लोग, माने जो अधर्मी-पापी लोग हैं उनके विनाश के लिए और धर्म की संस्थापना के उद्देश्य से हर युग में ‘सम्भवामि’, हर युग में 'भवित' होता हूँ, प्रकट, प्रस्तुत, अवतरित होता हूँ।<br /><br /><br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~~~~~~~